आर.एस.एस. और मुसलमान : कुछ लोगों के लिए एक रोमेंटिक खयाल |

मिडिया के लिए कुछ रोमेंटिक विषय रहेते है, जिसमें से एक विषय है मुसलमानों और राष्ट्रिय स्वयंसेवक संघ’ | अभी थोड़ी देर पहेले ही एक न्यूज़ चेनल के कार्यक्रम में एक बड़ा विश्लेषण आया | जिसमे बताया गया की संघ के विजयादशमी के संदर्भ में देश भर में चल रहे कार्यक्रमों में आजतक किसी मुसलमान को कार्यक्रम के अध्यक्ष या अतिथि विशेष के स्वरूप में आमंत्रित नहीं किया गया था, पर अभी अभी संपन्न हुए कोई बाल स्वयंसेवको के कार्यक्रम में एक मुसलमान डॉक्टर को कार्यक्रम के अध्यक्ष के रूप में आमंत्रित किया गया | और फिर एक छोटा सा विशेल्षण भी यह चेनल ने लोगो के दिमाग में डालने की कोशिश की | इस विश्लेषण में ऐसा कहा गया की संघ ने अब अपने हिन्दू राष्ट्र में मुसलमानों को जगह देना शुरू किया है |

राष्ट्रिय स्वयंसेवक संघ के प्रथम सरसंघचालक से लेकर वर्तमान सरसंघचालक मोहन भागवतजी तक लगभग सभी ने कई मोको पर एक बात स्पष्ट की है, की संघ हिंदुत्व का पक्षधर है पर उसका अर्थ यह नहीं की वह गैर हिन्दू सम्प्रदायों के खिलाफ है | संघ के स्वयंसेवक जब हिन्दू शब्द का प्रयोग करते है तो उनके सामने एक सांस्कृतिक हिन्दू का चरित्र खड़ा होता है | संघ का स्वयंसेवक कभी पूजा पध्धति के आधार पर हिन्दू या गेरहिन्दू की समज में फर्क नहीं करता | हिन्दू कौन है उसकी स्पष्ट समज उसके दिमाग में होती है | इस देश की धरती को अपना मानना, यहाँ के इतिहास के प्रति सामान भाव रखना, पूर्वजो को अपना मानना, संस्कृति और परंपरा का आदर करना .. बस यही सब होता है किसी भी व्यक्ति को हिन्दू या गैर हिन्दू में परिभाषित करने के लिए | यहाँ रहेता हुआ कोई मुसलमान हो या इसाई हो या हिन्दू हो उसको राम से अपनापन लगना चाहिए नहीं की बाबर से | वंदे मातरम कहेने के लिए हम किसी को बाध्य नहीं करेंगे परंतु किसी के ह्रदय से स्वाभाविक तरीके से अगर वंदेमातरम निकलता है तो वह व्यक्ति तुरंत अपनासा लगने लगता है | और इसी परिभाषा में फिट बेठने वाला कोई भी व्यक्ति आर एस एस की शाखा में या कार्यक्रम में आता है तो स्वयंसेवको को भी स्वाभाविक ही लगता है | हा मिडिया के लोग जो संघ को नहीं जानते, उनको कोई मुसलमान या इसाई अगर संघ के किसी कार्यक्रम में आते है तो रोमेंटिक लगता है |

इस विश्लेषण में दूसरी बात यह थी की आर एस ऐस के हिन्दू राष्ट्र में मुसलमानों और इसाइयों के लिए भी जगह होगी | संघ के बारे में जानबुजकर फेलाई जाने वाली कुछ गलत बातों में से एक बात यह है की संघ हिन्दू राष्ट्र की स्थापना करना चाहता है | डॉ हेडगेवारजी ने जब संघ की स्थापना नहीं की थी तब की बात है , किसी कार्यक्रम में मंचस्थ महानुभाव बार बार बोल रहे थे की कोन कहेता है की भारत एक हिन्दू राष्ट्र है ? तब मंच के सामने बेठे डॉ हेडगेवारजी ने कहा था की मै केशव बलीराम हेडगेवार कहेता हु की यह हिन्दू राष्ट्र है, और इस संस्कृति का वहन करने वाला एक भी व्यक्ति इस धरती पर जीवित होगा तबतक यह हिन्दू राष्ट्र रहेगा ही |

डॉ हेडगेवारजी की बात से यह स्पष्ट होता है की भारत एक हिन्दू राष्ट्र है ही, तो फिर इसे हिन्दू राष्ट्र कैसे बनाया जायेगा ? जो है वह है उसे फिर से ऐसा ही बनाने की आवश्यकता ही क्या है ? दरअसल ज्यादातर लोग राष्ट्र शब्द को पश्चिम के “नेशन” शब्द से जोड़ते है | पश्चिम का जो नेशन शब्द है वह राजनैतिक ज्यादा है और भारत का राष्ट्र शब्द है वह सांस्कृतिक ज्यादा है | पश्चिम में राज्य से समाज चलता है हमारे वहां राज्य एक व्यवस्था मात्र है जो समाज के लिए है | इस लिए हमारे यहाँ जब राष्ट्र शब्द आता है तो एक भू-भाग, संस्कृति और परंपरा के रूप में आता है, जहाँ व्यक्तिगत, सामाजिक एवं आध्यात्मिक जीवन में राज्य का दखल नहीं होता था | इस लिए भारत में राजाओ का कोई मत, पंथ या संप्रदाय होता था पर राज्य का नहीं होता था |

समाज को सही दिशा देना, सही समज देना यह मिडिया का कार्य है पर कई बार ऐसे माध्यमो में कार्यरत व्यक्तिओ की समज में आभाव होता ही या फिर किसी और विचारधारा का प्रभाव् होता है, इसी वजह से सही बात को सही तरह से पेश करने से चुक जाते है | पर बात साफ़ है हिन्दू संस्कृति को अपना कर किसी भी पूजा पध्धति को मानने वाले व्यक्ति आर एस एस की शाखा में आए या उसके कार्यक्रम में आए स्वयंसेवकों को आश्चर्य नहीं होता |

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  1. 1

    संजय बेंगानी

    पश्चिम का जो नेशन शब्द है वह राजनैतिक ज्यादा है और भारत का राष्ट्र शब्द है वह सांस्कृतिक ज्यादा है |

    सौ बात की एक बात.

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